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तू पशेमाँ न हो मैं शाद हूँ नाशाद नहीं | शाही शायरी
tu pasheman na ho main shad hun nashad nahin

ग़ज़ल

तू पशेमाँ न हो मैं शाद हूँ नाशाद नहीं

ज़ेब ग़ौरी

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तू पशेमाँ न हो मैं शाद हूँ नाशाद नहीं
ज़िंदगी तेरा करम है तिरी बेदाद नहीं

वो सनम-ख़ाना-ए-दिल हो कि गुज़र-गाह-ए-ख़याल
मैं ने तुझ को कहीं देखा है मगर याद नहीं

देख ऐ ख़ाक-ए-परेशानी-ए-ख़ातिर मेरी
तू ने समझा था कि तुझ सा कोई बरबाद नहीं

ढूँडती फिरती हैं जाने मिरी नज़रें किस को
ऐसी बस्ती में जहाँ कोई भी आबाद नहीं

कब हमें अपनी उदासी की ख़बर थी ऐ 'ज़ेब'
मुस्कुराए हैं तो देखा है कि दिल शाद नहीं