तू न हो हम-नफ़स अगर जीने का लुत्फ़ ही नहीं
जिस में न तू शरीक हो मौत है ज़िंदगी नहीं
इशरत-ए-दीद है यही अपना भी कुछ रहे न होश
जल्वा ब-क़ैद-ए-ताब-ए-दीद अस्ल में जल्वा ही नहीं
अव्वल-ए-इश्क़ ही में क्या दिल का मआल देखना
ये तो है इब्तिदा-ए-सोज़ आग अभी लगी नहीं
इश्क़ है कैफ़-ए-बे-ख़ुदी इस को ख़ुदी से क्या ग़रज़
जिस की फ़ज़ा हो वस्ल ओ हिज्र इश्क़ वो इश्क़ ही नहीं
ये भी न हो ख़बर कि सर सज्दे में है झुका हुआ
जिस में हो बंदगी का होश वो कोई बंदगी नहीं
किस का सर-ए-नियाज़ था पा-ए-अयाज़ पर झुका
माना-ए-बंदगी-ए-शौक़ सतवत-ए-ख़ुसरवी नहीं
कर न सुकून-ए-दिल का ग़म हादी-ए-मुब्तला ज़रा
इश्क़ की बारगाह में दर्द की कुछ कमी नहीं
ग़ज़ल
तू न हो हम-नफ़स अगर जीने का लुत्फ़ ही नहीं
हादी मछलीशहरी