तू देख उसे सब जा आँखों के उठा पर्दे
मानिंद सुवैदा के दिल बीच उसे घर दे
आलम के मुरक़्क़े में तस्वीर उसी की है
सब हुस्न यहाँ यारो उस हुस्न के हैं गर्दे
सय्याद का शर्मिंदा हूँ बे-पर-ओ-बाली से
उड़ कर अभी जा पहुँचूँ जो मुझ को ख़ुदा पर दे
साक़ी तुझे कम-ज़र्फ़ी मस्तों से नहीं लाज़िम
तरसा न मुझे काफ़िर साग़र के तईं भर दे
बज़्म-ए-दिल-ए-मुशताक़ाँ जूँ शाम-ए-ग़रीबाँ है
यक जल्वा में तू रौशन आ शम-ए-सिफ़त कर दे
हम अर्ज़ किया उस की ख़िदमत में कि ऐ साहब
इतने तिरे बंदों में एक हम भी हैं नौ-वर्दे
दौलत से तिरी सब कुछ हम पास मुहय्या है
लब ख़ुश्क ओ जिगर बिरयाँ चश्म-ए-तर ओ दिल सर दे
'हातिम' वो लगा कहने ग़ुस्से से कि चल झूठे
बंदा मैं उसे जानूँ जो पहले क़दम सर दे
हुश्यार करूँ 'हातिम' मस्तों को निगाहों में
क़तरा मय-ए-वहदत से जो साक़ी-ए-कौसर दे
ग़ज़ल
तू देख उसे सब जा आँखों के उठा पर्दे
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम