तू दरिया है और ठहरने वाला मैं
गुम है मुझ में ख़ुद से गुज़रने वाला मैं
सूरज जैसा मंज़र मंज़र बिखरा तू
आईनों की धूप से डरने वाला मैं
तेरी गली से सर को झुकाए गुज़रा हूँ
कभी ज़मीं पर पाँव न धरने वाला मैं
साया साया धूप उगाने वाला तू
ख़्वाबों जैसा आँख उतरने वाला मैं
जिस बस्ती में शाम उतरने वाली हो
उस बस्ती के नाम से डरने वाला मैं
किसी वरक़ पर मुझे न लिखना दोस्त मिरे
अंदर बाहर रोज़ बिखरने वाला मैं

ग़ज़ल
तू दरिया है और ठहरने वाला मैं
सलीम मुहीउद्दीन