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तू भली बात से ही मेरी ख़फ़ा होता है | शाही शायरी
tu bhali baat se hi meri KHafa hota hai

ग़ज़ल

तू भली बात से ही मेरी ख़फ़ा होता है

ताबाँ अब्दुल हई

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तू भली बात से ही मेरी ख़फ़ा होता है
आह क्या चाहना ऐसा ही बुरा होता है

तेरे अबरू से मिरा दिल न छुटेगा हरगिज़
गोश्त नाख़ुन से भला कोई जुदा होता है

मैं समझता हूँ तुझे ख़ूब तरह ऐ अय्यार
तेरे इस मक्र के इख़्लास से क्या होता है

है कफ़-ए-ख़ाक मिरी बस-कि तब-ए-इश्क़ से गर्म
पाँव वाँ जिस का पड़े आबला-पा होता है

दिल मिरा हाथ से जाता है करूँ क्या तदबीर
यार मुद्दत का मिरा हाए जुदा होता है

राहबर मंज़िल-ए-मक़्सूद को दरकार नहीं
शौक़-ए-दिल अपना ही याँ राह-नुमा होता है

ग़ैर हरजाई मिरा यार लिए जाता है
मुझ पे 'ताबाँ' ये सितम आज बड़ा होता है