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तू अपने पिंदार की ख़बर ले कि रुख़ हवा का बदल रहा है | शाही शायरी
tu apne pindar ki KHabar le ki ruKH hawa ka badal raha hai

ग़ज़ल

तू अपने पिंदार की ख़बर ले कि रुख़ हवा का बदल रहा है

मुग़ीसुद्दीन फ़रीदी

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तू अपने पिंदार की ख़बर ले कि रुख़ हवा का बदल रहा है
तिरी नज़र से बहकने वाला फ़रेब खा कर सँभल रहा है

यही है दस्तूर-ए-शहर-ए-हस्ती कि जो नया है वही पुराना
हयात अंगड़ाई ले रही है ज़माना करवट बदल रहा है

रह-ए-तलब में जुनूँ ने अक्सर शुऊर को आईना दिखाया
जिसे था उज़्र-ए-शिकस्ता-पाई वो अब सितारों पे चल रहा है

हमें ये ताने न दो कि हम ने ज़माना-साज़ी के गुर न सीखे
कि रफ़्ता रफ़्ता मिज़ाज-ए-दुनिया हमारे साँचे में ढल रहा है

तिरी अदाओं की सादगी में किसी को महसूस भी न होगा
अभी क़यामत का इक करिश्मा हया के दामन में पल रहा है

किसी में हिम्मत न थी कि बढ़ कर जुनूँ की ज़ंजीर थाम लेता
ख़िरद की बस्ती में है अँधेरा चराग़ सहरा में जल रहा है

हज़ार शेवे थे गुफ़्तुगू के हज़ार अंदाज़ थे सुख़न के
मगर ब-ईमा-ए-दिल 'फ़रीदी' फ़िदा-ए-रंग-ए-ग़ज़ल रहा है