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तुम्हें पाने की हैसिय्यत नहीं है | शाही शायरी
tumhein pane ki haisiyyat nahin hai

ग़ज़ल

तुम्हें पाने की हैसिय्यत नहीं है

फरीहा नक़वी

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तुम्हें पाने की हैसिय्यत नहीं है
मगर खोने की भी हिम्मत नहीं है

बहुत सोचा बहुत सोचा है मैं ने
जुदाई के सिवा सूरत नहीं है

तुम्हें रोका तो जा सकता है लेकिन
मिरे आसाब में क़ुव्वत नहीं है

मिरे अश्को मिरे बे-कार अश्को!!
तुम्हारी अब उसे हाजत नहीं है

अभी तुम घर से बाहर मत निकलना
तुम्हारी होश की हालत नहीं है

दुआ क्या दूँ भला जाते हुए मैं
तुम्हें तकने से ही फ़ुर्सत नहीं है

मोहब्बत कम न होगी याद रखना!!
ये बढ़ती है, कि ये दौलत नहीं है

ज़माने अब तिरे मद्द-ए-मुक़ाबिल
कोई कमज़ोर सी औरत नहीं है