तुम ने जी भर के सताने की क़सम खाई है
मैं ने आँसू न बहाने की क़सम खाई है
बाग़बानों ने ये एहसास हुआ है मुझ को
आशियानों को जलाने की क़सम खाई है
इन्क़िलाबात के शोले भी कहीं बुझते हैं
आप ने आग बुझाने की क़सम खाई है
डर यही है कि कहीं ख़ुद से न धोका खा जाए
जिस ने धोके में न आने की क़सम खाई है
तुझ पे मरता हूँ तिरे सर की क़सम खाता हूँ
ग़ैर ने आज ठिकाने की क़सम खाई है
साफ़ ज़ाहिर है कि अब राज़ नहीं रह सकता
राज़-दारों ने छुपाने की क़सम खाई है
'शाद' साहिब की तरह मैं ने 'मुज़फ़्फ़र'-हनफ़ी
तंज़ पर सान चढ़ाने की क़सम खाई है
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ग़ज़ल
तुम ने जी भर के सताने की क़सम खाई है
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी