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तुम कह रहे हो नीले ख़ला में रंगों का जाल फैला है | शाही शायरी
tum kah rahe ho nile KHala mein rangon ka jal phaila hai

ग़ज़ल

तुम कह रहे हो नीले ख़ला में रंगों का जाल फैला है

रईस फ़राज़

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तुम कह रहे हो नीले ख़ला में रंगों का जाल फैला है
मैं पूछता हूँ रंगों के पार पानी का रंग कैसा है

मुजरिम है दिल कि मामूली आहटों पर भी चौंक उठता है
कमरे में वर्ना कोई नहीं ये पागल हवा का झोंका है

मैं सख़्त रास्तों पर चला हूँ मेरे निशाँ न ढूँडो तुम
पत्थर पे ख़ुद ही चल कर बताओ क्या कोई नक़्श बनता है

कितने शगुफ़्ता चेहरों में लोग ख़ुद को छुपाए फिरते हैं
पर क्या बताऊँ चेहरों के पार मुझ को दिखाई देता है

तुम आज सारी सम्तों में बर्फ़ से मेरा नाम लिखते हो
तुम जानते हो मौसम के साथ इस बर्फ़ को पिघलना है

धुँदली उदास गलियों में लोग साए की तरह चलते हैं
मंज़र उठाओ पलकें सजाओ सब कुछ तो ख़्वाब जैसा है