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तुम अपने आप पर एहसान क्यूँ नहीं करते | शाही शायरी
tum apne aap par ehsan kyun nahin karte

ग़ज़ल

तुम अपने आप पर एहसान क्यूँ नहीं करते

मदन मोहन दानिश

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तुम अपने आप पर एहसान क्यूँ नहीं करते
किया है इश्क़ तो एलान क्यूँ नहीं करते

सजाए फिरते हो महफ़िल न जाने किस किस की
कभी परिंदों को मेहमान क्यूँ नहीं करते

वो देखते ही नहीं जो है मंज़रों से अलग
कभी निगाह को हैरान क्यूँ नहीं करते

पुरानी सम्तों में चलने की सब को आदत है
नई दिशाओं का वो ध्यान क्यूँ नहीं करते

बस इक चराग़ के बुझने से बुझ गए 'दानिश'
तुम आंधियों को परेशान क्यूँ नहीं करते