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तुझ को पाने के लिए ख़ाक-ए-तमन्ना हो जाऊँ | शाही शायरी
tujhko pane ke liye KHak-e-tamanna ho jaun

ग़ज़ल

तुझ को पाने के लिए ख़ाक-ए-तमन्ना हो जाऊँ

सुल्तान अख़्तर

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तुझ को पाने के लिए ख़ाक-ए-तमन्ना हो जाऊँ
तेरे क़दमों में बिखर कर तिरा रस्ता हो जाऊँ

और कब तक मैं करूँ मदह-सराई अपनी
मुझ को तौफ़ीक़ दे या-रब कि मैं तेरा हो जाऊँ

तुझ को कोई भी कभी मेरे सिवा देख न पाए
आँख में भर लूँ तुझे और मैं अंधा हो जाऊँ

चंद लम्हों के लिए ख़ुद को मुकम्मल देखूँ
बे-इरादा ही सही मैं कभी यकजा हो जाऊँ

फ़िक्र-ए-उक़्बा न करूँ तुझ में गिरफ़्तार रहूँ
शायरी तेरे लिए मैं सग-ए-दुनिया हो जाऊँ

ये करिश्मा भी किसी रोज़ तो रौशन हो जाए
तू मिरी आरज़ू में तेरी तमन्ना हो जाऊँ

मैं कि अम्बोह-ए-अज़ीज़ाँ में किसी का भी नहीं
ज़िंदगी मुझ से लिपट जा कि मैं तेरा हो जाऊँ

ये अजब शर्त है तस्लीम-ओ-रज़ा की 'अख़्तर'
ख़ुद को पहचानना चाहूँ तो मैं अंधा हो जाऊँ