EN اردو
तुझ को मेरे क़ुर्ब में पा कर जलते हैं दीवाने लोग | शाही शायरी
tujhko mere qurb mein pa kar jalte hain diwane log

ग़ज़ल

तुझ को मेरे क़ुर्ब में पा कर जलते हैं दीवाने लोग

सत्यपाल जाँबाज़

;

तुझ को मेरे क़ुर्ब में पा कर जलते हैं दीवाने लोग
मेरे तेरे नाम से अक्सर गढ़ते हैं अफ़्साने लोग

आज ख़िज़ाँ के हाथ गुलिस्ताँ बेच दिए हैं यारों ने
फ़स्ल-ए-गुल को याद करेंगे देख के ये वीराने लोग

लोगों की तश्हीर के डर से हम ने मिलना छोड़ दिया
भूली-बिसरी बातें ले कर कहते हैं अफ़्साने लोग

मैं ने तुझ से प्यार किया था मैं ने तुझ को पूजा था
उल्फ़त मेरी देख न पाए उल्फ़त से बेगाने लोग

इन को पागल कहने वालो इन की कुछ तौक़ीर करो
रौनक़-ए-बज़्म-ए-हस्ती में ये दुनिया के दीवाने लोग

उन को है कब प्यार किसी से जो नफ़रत के आदी हैं
जाने किस मिट्टी से बने हैं हाए ये अनजाने लोग

इस दुनिया में रह कर हम ने देखा है 'जाँबाज़' यही
वक़्त पड़े तो कर लेते हैं मतलब के याराने लोग