तिश्नगी अच्छी नहीं रखना बहुत
रौज़न-ए-गुल से उसे तकना बहुत
देख कर जिस शख़्स को हँसना बहुत
सर को इस के सामने ढकना बहुत
जिस की आँखों में न झाँका जाएगा
इस की ही तहरीर को पढ़ना बहुत
मौजा-ए-रेग-ए-रवाँ है ज़ेर-ए-आब
अपनी हस्ती देख कर बढ़ना बहुत
बर्फ़ की मानिंद जीना उम्र भर
रेत की सूरत मगर तपना बहुत
उम्र भर की बंदिशें ख़्वाब-ओ-ख़याल
दो क़दम भी साथ है चलना बहुत
ख़स्तगी 'नाहीद' बन जाए न जुर्म
अपनी हस्ती देख कर बढ़ना बहुत
ग़ज़ल
तिश्नगी अच्छी नहीं रखना बहुत
किश्वर नाहीद

