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तिश्नगी अच्छी नहीं रखना बहुत | शाही शायरी
tishnagi achchhi nahin rakhna bahut

ग़ज़ल

तिश्नगी अच्छी नहीं रखना बहुत

किश्वर नाहीद

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तिश्नगी अच्छी नहीं रखना बहुत
रौज़न-ए-गुल से उसे तकना बहुत

देख कर जिस शख़्स को हँसना बहुत
सर को इस के सामने ढकना बहुत

जिस की आँखों में न झाँका जाएगा
इस की ही तहरीर को पढ़ना बहुत

मौजा-ए-रेग-ए-रवाँ है ज़ेर-ए-आब
अपनी हस्ती देख कर बढ़ना बहुत

बर्फ़ की मानिंद जीना उम्र भर
रेत की सूरत मगर तपना बहुत

उम्र भर की बंदिशें ख़्वाब-ओ-ख़याल
दो क़दम भी साथ है चलना बहुत

ख़स्तगी 'नाहीद' बन जाए न जुर्म
अपनी हस्ती देख कर बढ़ना बहुत