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तिश्ना-लबी ने जब भी ज़ौक़-ए-अमल दिया है | शाही शायरी
tishna-labi ne jab bhi zauq-e-amal diya hai

ग़ज़ल

तिश्ना-लबी ने जब भी ज़ौक़-ए-अमल दिया है

मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद

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तिश्ना-लबी ने जब भी ज़ौक़-ए-अमल दिया है
रिंदों ने मय-कदे का साक़ी बदल दिया है

दुनिया है इस की शाहिद इस शहर-ए-बे-अमाँ ने
जिस में अना समाई वो सर कुचल दिया है

खिलते रहे हैं जो गुल बाद-ए-ख़िज़ाँ की शह पर
दस्त-ए-सबा ने बढ़ कर उन को मसल दिया है

सब ने सुनी है जिस में अस्र-ए-रवाँ की धड़कन
'मंज़ूर' हम ने ऐसा साज़-ए-ग़ज़ल दिया है