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तिरी याद जो मेरे दिल में है बस उसी की जल्वागरी रही | शाही शायरी
teri yaad jo mere dil mein hai bas usi ki jalwagari rahi

ग़ज़ल

तिरी याद जो मेरे दिल में है बस उसी की जल्वागरी रही

सूफ़िया अनजुम ताज

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तिरी याद जो मेरे दिल में है बस उसी की जल्वागरी रही
मिरा ग़म भी ताज़ा-ब-ताज़ा है मिरी शाख़-ए-फ़न भी हरी रही

मैं ने अपने पर्दा-ए-शेर में तुझे इस हुनर से छुपा लिया
कि ग़ज़ल कही तो हर इक ग़ज़ल तिरी ख़ुशबुओं से भरी रही

यही ज़िंदगी मिरी ज़िंदगी यही ज़िंदगी मिरी मौत है
तिरी याद बन गई इक छुरी जो मिरे गले पे धरी रही

तुझे शौक़ मेरे कलाम से तुझे प्यार मेरे हुनर से था
तुझे अपना मैं न बना सकी यही मेरी बे-हुनरी रही

मैं फ़रेफ़्ता तेरे नाज़ पर मैं निसार तेरे नियाज़ पर
तिरी हर अदा में फ़रेब था मुझे जिस की बे-ख़बरी रही

कभी 'अंजुम' वो भी दिन आ गए कि ख़ुशी की बज़्म सजाएँगे
ये तमन्ना जो मेरे दिल में थी वो यूँही धरी की धरी रही