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तिरी तलब ने फ़लक पे सब के सफ़र का अंजाम लिख दिया है | शाही शायरी
teri talab ne falak pe sab ke safar ka anjam likh diya hai

ग़ज़ल

तिरी तलब ने फ़लक पे सब के सफ़र का अंजाम लिख दिया है

गुलज़ार बुख़ारी

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तिरी तलब ने फ़लक पे सब के सफ़र का अंजाम लिख दिया है
किसी को नज्म-ए-सहर किसी को सितारा-ए-शाम लिख दिया है

ज़बाँ पे हर्फ़-ए-मलाल क्यूँ हो कि हम हैं राज़ी तिरी रज़ा पर
तिरा करम तू ने आब-ओ-दाना अगर तह-ए-दाम लिख दिया है

बचा के अपने लिए न रक्खा कोई गरेबाँ का तार हम ने
जुनूँ से जो कुछ भी हम ने पाया वो सब तिरे नाम लिख दिया है

निगाह बाज़ार पर नहीं थी वगर्ना क्यूँ चारा-साज़-ए-ग़म ने
मरीज़ के नुस्ख़ा-ए-शिफ़ा में ख़ुलूस का जाम लिख दिया है

ये किस के ख़ामे का है नविश्ता कि बुल-हवस ऐश कर रहे हैं
नसीब-ए-अहल-ए-नज़र में किस ने हुजूम-ए-आलाम लिख दिया है

जहान-ए-हर्फ़-ओ-सदा में चर्चा न क्यूँ हो 'गुलज़ार' ख़ास तेरा
तिरे लिए तेरी ख़ुश-नवाई ने शोहरा-ए-आम लिख दिया है