तिरी तलब ने फ़लक पे सब के सफ़र का अंजाम लिख दिया है
किसी को नज्म-ए-सहर किसी को सितारा-ए-शाम लिख दिया है
ज़बाँ पे हर्फ़-ए-मलाल क्यूँ हो कि हम हैं राज़ी तिरी रज़ा पर
तिरा करम तू ने आब-ओ-दाना अगर तह-ए-दाम लिख दिया है
बचा के अपने लिए न रक्खा कोई गरेबाँ का तार हम ने
जुनूँ से जो कुछ भी हम ने पाया वो सब तिरे नाम लिख दिया है
निगाह बाज़ार पर नहीं थी वगर्ना क्यूँ चारा-साज़-ए-ग़म ने
मरीज़ के नुस्ख़ा-ए-शिफ़ा में ख़ुलूस का जाम लिख दिया है
ये किस के ख़ामे का है नविश्ता कि बुल-हवस ऐश कर रहे हैं
नसीब-ए-अहल-ए-नज़र में किस ने हुजूम-ए-आलाम लिख दिया है
जहान-ए-हर्फ़-ओ-सदा में चर्चा न क्यूँ हो 'गुलज़ार' ख़ास तेरा
तिरे लिए तेरी ख़ुश-नवाई ने शोहरा-ए-आम लिख दिया है
ग़ज़ल
तिरी तलब ने फ़लक पे सब के सफ़र का अंजाम लिख दिया है
गुलज़ार बुख़ारी