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तिरी निगाह के जादू बिखरते जाते हैं | शाही शायरी
teri nigah ke jadu bikharte jate hain

ग़ज़ल

तिरी निगाह के जादू बिखरते जाते हैं

नासिर काज़मी

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तिरी निगाह के जादू बिखरते जाते हैं
जो ज़ख़्म दिल को मिले थे वो भरते जाते हैं

तिरे बग़ैर वो दिन भी गुज़र गए आख़िर
तिरे बग़ैर ये दिन भी गुज़रते जाते हैं

लिए चलो मुझे दरिया-ए-शौक़ की मौजो
कि हम-सफ़र तो मिरे पार उतरते जाते हैं

तमाम-उम्र जहाँ हँसते खेलते गुज़री
अब उस गली में भी हम डरते डरते जाते हैं

मैं ख़्वाहिशों के घरौंदे बनाए जाता हूँ
वो मेहनतें मिरी बर्बाद करते जाते हैं