तिरा तज़्किरा सू-ब-सू क्यूँ करें हम
मोहब्बत को बे-आबरू क्यूँ करें हम
लिखी है मुक़द्दर में ना-कामयाबी
करें तो ग़म-ए-आरज़ू क्यूँ करें हम
अगर रंग-ओ-बू इस चमन का है फ़ानी
नज़र माइल-ए-रंग-ओ-बू क्यूँ करें हम
हसीनों का पास-ए-वफ़ा ग़ैर-मुमकिन
हसीनों से ये आरज़ू क्यूँ करें हम
अदावत ही जब हासिल-ए-दोस्ती है
मोहब्बत की फिर आरज़ू क्यूँ करें हम
करें क्यूँ तुम्हारे सितम की शिकायत
मोहब्बत को बे-आबरू क्यूँ करें हम
अगर 'शाद' हम ख़ुद ही खोए हुए हैं
किसी और की जुस्तुजू क्यूँ करें हम
ग़ज़ल
तिरा तज़्किरा सू-ब-सू क्यूँ करें हम
नरेश कुमार शाद