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तिरा ख़याल था लफ़्ज़ों में ढल गया कैसे | शाही शायरी
tera KHayal tha lafzon mein Dhal gaya kaise

ग़ज़ल

तिरा ख़याल था लफ़्ज़ों में ढल गया कैसे

अमीर अहमद ख़ुसरव

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तिरा ख़याल था लफ़्ज़ों में ढल गया कैसे
दिलों में शम-ए-ग़ज़ल बन के जल गया कैसे

वो आदमी जो मिरा दोस्त था ज़माने तक
पता नहीं कि यकायक बदल गया कैसे

बहुत ही तेज़ हवा शेर-ए-हादसात की थी
मैं गिरते गिरते न जाने सँभल गया कैसे

कहीं भी आग लगाने का वाक़िआ' न हुआ
तो फिर हुज़ूर मकाँ मेरा जल गया कैसे

ख़लिश से जिस की थी वाबस्ता याद मंज़िल की
वो ख़ार पाँव से 'ख़ुसरव' निकल गया कैसे