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तिरा दिल तो नहीं दिल की लगी हूँ | शाही शायरी
tera dil to nahin dil ki lagi hun

ग़ज़ल

तिरा दिल तो नहीं दिल की लगी हूँ

सुलैमान अरीब

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तिरा दिल तो नहीं दिल की लगी हूँ
तिरे दामन पे आँसू की नमी हूँ

मैं अपने शहर में तो अजनबी था
मैं अपने घर में भी अब अजनबी हूँ

कहाँ तक मुझ को सुलझाते रहोगे
बहुत उलझी हुई सी ज़िंदगी हूँ

ख़बर जिस की नहीं बाहर किसी को
मैं तह-खाने की ऐसी रौशनी हूँ

थकन से चूर तन्हा सोच में गुम
मैं पिछली रात की वो चाँदनी हूँ

मिरा ये हश्र भी होना था इक दिन
कभी इक चीख़ था अब ख़ामुशी हूँ

गुज़र कर नेक-ओ-बद की हर गली से
सरापा आगही हूँ गुमरही हूँ

मिरा ये हुज़्निया इस दौर में है
सुख़न तो हूँ मगर ना-गुफ़्तनी हूँ