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तिरा आसमाँ नावकों का ख़ज़ीना हयात-आफ़रीना हयात-आफ़रीना | शाही शायरी
tera aasman nawakon ka KHazina hayat-afrina hayat-afrina

ग़ज़ल

तिरा आसमाँ नावकों का ख़ज़ीना हयात-आफ़रीना हयात-आफ़रीना

अख़्तर अंसारी

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तिरा आसमाँ नावकों का ख़ज़ीना हयात-आफ़रीना हयात-आफ़रीना
हमारी ज़मीं ला'ल-ओ-गुल का दफ़ीना हयात-आफ़रीना हयात-आफ़रीना

हुए नाम और नंग सब ग़र्क़-ए-सहबा मिरी मय-गुसारी की होगी सज़ा क्या
तिरे नाम का एक जुरआ' यही ना हयात-आफ़रीना हयात-आफ़रीना

तिरे वादा-ए-रिज़्क की है दुहाई अगर रिज़्क़ आज़ूक़ा-ए-रूह भी है
तो हम तो हैं महरूम-ए-नान-ए-शबीना हयात-आफ़रीना हयात-आफ़रीना

न साँसों में जोश-ए-नुमू का तलातुम न मरने के ग़म में गुदाज़-ए-तअल्लुम
ये जीना भी है कोई जीने में जीना हयात-आफ़रीना हयात-आफ़रीना

ज़मीं का कलेजा बहुत फुंक रहा है फ़लक फट पड़े क़ुल्ज़ुम-ए-ख़ूँ रवाँ हो
जबीन-ए-मशिय्यत से टपके पसीना हयात-आफ़रीना हयात-आफ़रीना

मह-ओ-मेहर-ओ-अंजुम फ़लक के दुलारे तिरी मुम्लिकत के हसीं शाहज़ादे
हमारी ज़मीं काएनाती हसीना हयात-आफ़रीना हयात-आफ़रीना

नहीं 'अख़्तर'-ए-ज़ार मायूस ख़ुद से कि ज़ुल्मत भी छटती है दर्जा-ब-दर्जा
उतरती है रहमत भी ज़ीना-ब-ज़ीना हयात-आफ़रीना हयात-आफ़रीना