थक गए तुम हसरत-ए-ज़ौक़-ए-शहादत कम नहीं 
मुझ से दम ले लो अगर तेग़-ए-सितम में दम नहीं 
दर्दमंदान-ए-अज़ल रखते नहीं दरमाँ का ग़म 
सीना-ए-सद-चाक गुल मिन्नत-कश-ए-मरहम नहीं 
रोज़ मरते हैं हज़ारों देख कर नैरंग-ए-हुस्न 
गर यही आलम तुम्हारा है तो ये आलम नहीं 
मर मिटे हम इश्क़ के शोहरे वही हैं चार सू 
शोर-ए-रुस्वाई पस-ए-मुर्दन भी अपना कम नहीं 
नाला-ए-आतिश-फ़िशाँ यूँ ही अगर है औज पर 
तू नहीं ऐ आसमान-ए-फ़ित्नागर या हम नहीं 
बे-सबाती पर बहार-ए-बाग़ की रोता है चर्ख़ 
रू-ए-गुल पर क़तरा-हा-ए-अश्क हैं शबनम नहीं 
ख़ुश हैं मेरे मरने से 'तस्लीम' ख़्वेश ओ अक़रिबा 
ख़ाना-ए-शादी है गोया ख़ाना-ए-मातम नहीं
 
        ग़ज़ल
थक गए तुम हसरत-ए-ज़ौक़-ए-शहादत कम नहीं
अमीरुल्लाह तस्लीम

