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थामी हुई है काहकशाँ अपने हाथ से | शाही शायरी
thami hui hai kahkashan apne hath se

ग़ज़ल

थामी हुई है काहकशाँ अपने हाथ से

सरवत हुसैन

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थामी हुई है काहकशाँ अपने हाथ से
तामीर कर रहा हूँ मकाँ अपने हाथ से

आया हूँ वो ज़मीन ओ शजर ढूँडता हुआ
खींची थी इक लकीर जहाँ अपने हाथ से

हुस्न-ए-बहार मुझ को मुकम्मल नहीं लगा
मैं ने तराश ली है ख़िज़ाँ अपने हाथ से

आईने का हुज़ूर समुंदर लगा मुझे
काटा है मैं ने सैल-ए-गिराँ अपने हाथ से

'सरवत' हदफ़ बहुत हैं जवानान-ए-शहर में
रक्खो अभी न तीर ओ कमाँ अपने हाथ से