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तेज़ हवाओ अब डरना घबराना कैसा | शाही शायरी
tez hawao ab Darna ghabrana kaisa

ग़ज़ल

तेज़ हवाओ अब डरना घबराना कैसा

गुलज़ार वफ़ा चौदरी

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तेज़ हवाओ अब डरना घबराना कैसा
चलना ही ठहरा तो शोर मचाना कैसा

आँगन आँगन में वीरानी नाच रही है
साज़ उठाना कैसा नग़्मा गाना कैसा

शाम ढले से आसेबों का डंका बाजे
पूरन-माशी में भी बाहर आना कैसा

ऐ सय्याहो ये तो दलदल की वादी है
इस में उतरे हो तो जान बचाना कैसा

सारे मौसम एक तसलसुल में शामिल हैं
तेरा आना कैसा तेरा जाना कैसा

उन की ख़ातिर हम को सूरज हँसना होगा
यख़ शहरों को आहों से पिघलाना कैसा