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तेरी तस्वीर को तस्कीन-ए-जिगर समझे हैं | शाही शायरी
teri taswir ko taskin-e-jigar samjhe hain

ग़ज़ल

तेरी तस्वीर को तस्कीन-ए-जिगर समझे हैं

फ़ज़ल हुसैन साबिर

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तेरी तस्वीर को तस्कीन-ए-जिगर समझे हैं
तेरे दीदार को हम ज़ौक़-ए-नज़र समझे हैं

क़हर की आँखों से तुम ने हमें जब भी देखा
हम इसे ऐन मोहब्बत की नज़र समझे हैं

है यही उन का समझना तो ख़ुदा हाफ़िज़ है
तालिब-ए-ख़ैर को वो बानी-ए-शर समझे हैं

उन की मानिंद कोई साहब-ए-इदराक कहाँ
जो फ़रिश्ते नहीं समझे वो बशर समझे हैं

अपनी आँखों में जगह देते हैं मुझ को 'साबिर'
मेरे अहबाब मुझे कोहल-ए-बसर समझे हैं