EN اردو
तेरी दौलत रह जाएगी तेरे घर चौबारों तक | शाही शायरी
teri daulat rah jaegi tere ghar chaubaron tak

ग़ज़ल

तेरी दौलत रह जाएगी तेरे घर चौबारों तक

प्रबुद्ध सौरभ

;

तेरी दौलत रह जाएगी तेरे घर चौबारों तक
मेरे अक्षर सैर करेंगे सूरज चाँद सितारों तक

बात कफ़न की निकली थी पर रस्ते में नीलाम हुई
रंग-बिरंगी चुनरी हो गई जब पहुँची अख़बारों तक

जिस को जैसा रोग दिया है उस का वैसा चारा-गर
बीमारों तक वेद-जी पहुँचे शाएर इश्क़ के मारों तक

मय-ख़ाने में और तो क्या था हम-ज़ख्मों की महफ़िल थी
बेचारों से शुरूअ हुई थी ख़त्म हुई बेचारों तक

जम्हूरी तहज़ीब यही है सबकी अपनी हद-बंदी
जनता की हद एक मोहर तक नेताओं की नारों तक