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तेरे घर ख़्वाब में गया था ग़ैर | शाही शायरी
tere ghar KHwab mein gaya tha ghair

ग़ज़ल

तेरे घर ख़्वाब में गया था ग़ैर

लाला माधव राम जौहर

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तेरे घर ख़्वाब में गया था ग़ैर
अपनी आँखों से हम ने देखा है

किस क़दर है मिज़ाज में गर्मी
शोला है आग है भभूका है

ऐ बुतो क़ाबे का करो कुछ पास
दिल न तोड़ो ये घर ख़ुदा का है

चुप रहो क्यूँ मिज़ाज पूछते हो
हम जिएँ या मरें तुम्हें क्या है

उस गुल-ए-तर के आने से 'जौहर'
ख़ाना-ए-दिल तमाम महका है