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तेरा ख़याल भी है वज़-ए-ग़म का पास भी है | शाही शायरी
tera KHayal bhi hai waz-e-gham ka pas bhi hai

ग़ज़ल

तेरा ख़याल भी है वज़-ए-ग़म का पास भी है

अज़ीम मुर्तज़ा

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तेरा ख़याल भी है वज़-ए-ग़म का पास भी है
मगर ये बात कि दुनिया नज़र-शनास भी है

बहार-ए-सुब्ह-ए-अज़ल फिर गई निगाहों में
वही फ़ज़ा तिरे कूचे के आस पास भी है

जो हो सके तो चले आओ आज मेरी तरफ़
मिले भी देर हुई और जी उदास भी है

ख़ुलूस निय्यत-ए-रहरौ पे मुनहसिर है 'अज़ीम'
मक़ाम-ए-इश्क़ बहुत दूर भी है पास भी है