तज़्किरा उन का ही जो रंग बदल जाते हैं
बात सायों की नहीं साए तो ढल जाते हैं
आप ज़हमत न करें पुर्सिश-ए-हाल-ए-दिल की
मुँह से नाग़ुफ़्तनी जुमले भी निकल जाते हैं
इतना ख़ुश-फ़हम न हो ऐ दिल-ए-पज़-मुर्दा कि अब
वो शगूफ़े जो न खिल पाएँ कुचल जाते हैं
कुछ दिए ख़ून रग-ए-जाँ से हुए हैं रौशन
कुछ दिए तुंदी-ए-सहबा से भी जल जाते हैं

ग़ज़ल
तज़्किरा उन का ही जो रंग बदल जाते हैं
सईदुज़्ज़माँ अब्बासी