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तज़्किरा दिल का बार बार न कर | शाही शायरी
tazkira dil ka bar bar na kar

ग़ज़ल

तज़्किरा दिल का बार बार न कर

मसूद मैकश मुरादाबादी

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तज़्किरा दिल का बार बार न कर
हुस्न को हुस्न-ए-शर्मसार न कर

लुत्फ़-ए-नज़्ज़ारा-ए-बहार उठा
शरह अज्ज़ा-ए-बर्ग-ओ-बार न कर

क़द-ओ-गेसू को दाद-ए-इशरत दे
फ़िक्र-ए-आदाब-ए-गीर-ओ-दार न कर

बढ़ के साग़र उठा जो पीना है
इज़्न-ए-साक़ी का इंतिज़ार न कर

शौक़ की रौशनी में बढ़ता जा
कुछ ख़याल-ए-मआल-ए-कार न कर

दिन जो गुज़रें बग़ैर-ए-शाहिद-ओ-जाम
ज़िंदगी में उन्हें शुमार न कर

ज़ेर-ए-दीवार-ए-मय-कदा 'मैकश'
ख़ौफ़-ए-आशोब-ए-रोज़गार न कर