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तसव्वुर में कोई आया सुकून-ए-क़ल्ब-ओ-जाँ हो कर | शाही शायरी
tasawwur mein koi aaya sukun-e-qalb-o-jaan ho kar

ग़ज़ल

तसव्वुर में कोई आया सुकून-ए-क़ल्ब-ओ-जाँ हो कर

फ़ैज़ी निज़ाम पुरी

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तसव्वुर में कोई आया सुकून-ए-क़ल्ब-ओ-जाँ हो कर
मोहब्बत मुस्कुराती है बहार-ए-जावेदाँ हो कर

चमन में जब कभी जाता हूँ उन की याद आती है
तमन्ना चुटकियाँ लेती है पहलू में जवाँ हो कर

दिल-ए-वहशत-असर को होश जब आया तो देखा है
हवा के दोश पर उड़ता है दामन धज्जियाँ हो कर

सनोबर सा है क़द नर्गिस सी आँखें फूल सा चेहरा
वो मेरे सामने फिरते हैं अक्सर गुलिस्ताँ हो कर

शराब-ओ-शे'र-ओ-नग़्मा के सिवा क्या चाहिए 'फ़ैज़ी'
बला से ज़िंदगी जाए मता-ए-राएगाँ हो कर