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तर्क उल्फ़त में भी उस ने ये रिवायत रक्खी | शाही शायरी
tark ulfat mein bhi usne ye riwayat rakkhi

ग़ज़ल

तर्क उल्फ़त में भी उस ने ये रिवायत रक्खी

यशब तमन्ना

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तर्क उल्फ़त में भी उस ने ये रिवायत रक्खी
रोज़ मिलने की पुरानी वही आदत रक्खी

तू गया है तो पलट कर नहीं पूछा मैं ने
वर्ना बरसों तिरी यादों की अमानत रक्खी

कल अचानक कोई तस्वीर बनी काग़ज़ पर
मुद्दतों सब से छुपा कर तेरी सूरत रक्खी

वो मुक़द्दर में नहीं है तो उसी के दिल में
किस ने हर शय से ज़ियादा चाहत रक्खी

ख़ुद ही मिलता है बिछड़ता है 'यशब' अपने लिए
आने-जाने की अजब उस ने सुहूलत रक्खी