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तपिश गुलज़ार तक पहुँची लहू दीवार तक आया | शाही शायरी
tapish gulzar tak pahunchi lahu diwar tak aaya

ग़ज़ल

तपिश गुलज़ार तक पहुँची लहू दीवार तक आया

अख़्तर हुसैन जाफ़री

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तपिश गुलज़ार तक पहुँची लहू दीवार तक आया
चराग़-ए-ख़ुद-कलामी का धुआँ बाज़ार तक आया

हुआ काग़ज़ मुसव्वर एक पैग़ाम-ए-ज़बानी से
सुख़न तस्वीर तक पहुँचा हुनर पुरकार तक आया

अबस तारीक रस्ते को तह-ए-ख़ुर्शीद-ए-जाँ रक्खा
यही तार-ए-नफ़स आज़ार से पैकार तक आया

मोहब्बत का भँवर अपना शिकायत की जिहत अपनी
वो मेहवर दूसरा था जो मिरे पिंदार तक आया

अजब चेहरा सफ़र का था हवस के ज़र्द पानी में
क़दम दलदल से निकला तो ख़त-ए-रफ़्तार तक आया

फिर इस के बाद तम्बूर ओ अलम ना-मो'तबर ठहरे
कोई क़ासिद न इस शाम-ए-शिकस्त-आसार तक आया