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तमाम उम्र-ए-रवाँ का माल हैरत है | शाही शायरी
tamam umr-e-rawan ka mal hairat hai

ग़ज़ल

तमाम उम्र-ए-रवाँ का माल हैरत है

तसनीम आबिदी

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तमाम उम्र-ए-रवाँ का माल हैरत है
जवाब जिस का नहीं वो सवाल हैरत है

दुकान-ए-चश्म यहाँ बे-मिसाल हैरत है
इस आइने का सरासर कमाल हैरत है

ये ज़िंदगी तो तिरे साथ साथ ख़त्म हुइ
जो मुझ में बाक़ी है वो ला-ज़वाल हैरत है

वो ख़्वाब ऐसे थे ताबीर इन की थी ही नहीं
रमीदा हिज्र गुरेज़ाँ विसाल हैरत है

हुई तिलिस्म-ज़दा जब ये आइने ने कहा
यहाँ तो सारे का सारा जमाल हैरत है

अदम वजूद अदम उफ़ ये सिलसिले कैसे
मैं लुट गई हूँ मगर माला-माल हैरत है

ये काएनात है हैरान अपने होने पे
क़दम क़दम पे यहाँ महव-ए-हाल हैरत है