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तमाम हुस्न-ए-जहाँ का जवाब हो के रहा | शाही शायरी
tamam husn-e-jahan ka jawab ho ke raha

ग़ज़ल

तमाम हुस्न-ए-जहाँ का जवाब हो के रहा

अर्शी भोपाली

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तमाम हुस्न-ए-जहाँ का जवाब हो के रहा
जो दर्द दिल से उठा आफ़्ताब हो के रहा

वो बारगाह-ए-जुनूँ है नसीब-ए-इश्क़-ए-वफ़ा
ये दिल ये शौक़ नज़र-बारयाब हो के रहा

वही सफ़र है वही रस्म-ए-आबला-पाई
यक़ीन-ए-राह मिरा कामयाब हो के रहा

बहुत अज़ीज़ न क्यूँ हो कि दर्द है तेरा
ये दर्द बढ़ के रहा इज़्तिराब हो के रहा

अजीब चीज़ है ये शौक़-ए-आरज़ू-मंदी
हयात मिट के रही दिल ख़राब हो के रहा