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तल्ख़ी-ए-मय में ज़रा तल्ख़ी-ए-दिल भी घोलें | शाही शायरी
talKHi-e-mai mein zara talKHi-e-dil bhi gholen

ग़ज़ल

तल्ख़ी-ए-मय में ज़रा तल्ख़ी-ए-दिल भी घोलें

कृष्ण अदीब

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तल्ख़ी-ए-मय में ज़रा तल्ख़ी-ए-दिल भी घोलें
और कुछ देर यहाँ बैठ के पी लें रो लें

हर तरफ़ एक पुर-असरार सी ख़ामोशी है
अपने साए से कोई बात करें कुछ बोलें

कोई तो शख़्स हो जी-जान से चाहें जिस को
कोई तो जान-ए-तसव्वुर हो कि जिस के हो लें

आह ये दिल की कसक हाए ये आँखों की जलन
नींद आ जाए अगर आज तो हम भी सो लें