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तख़्लीक़ किसे कहते हैं है अज़्मत-ए-फ़न क्या | शाही शायरी
taKHliq kise kahte hain hai azmat-e-fan kya

ग़ज़ल

तख़्लीक़ किसे कहते हैं है अज़्मत-ए-फ़न क्या

रहबर जौनपूरी

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तख़्लीक़ किसे कहते हैं है अज़्मत-ए-फ़न क्या
आवाज़-फ़रोशों के लिए शेर-ओ-सुख़न क्या

फूलों की तिजारत का चलन आम है अब भी
लुटती ही रहेगी यूँही तक़्दीस-ए-चमन क्या

मज़लूम की चीख़ों को भी सुनता नहीं कोई
इस शहर में बस्ते हैं सभी संग-बदन क्या

हम आ तो गए बन के ज़िया ज़ुल्मत-ए-शब में
इस घोर अँधेरे में मगर एक किरन क्या

वक़्त आने पे सर अपना कटा देते हैं 'रहबर'
हम को नहीं मालूम कि है हुब्ब-ए-वतन क्या