EN اردو
तड़पती हैं तमन्नाएँ किसी आराम से पहले | शाही शायरी
taDapti hain tamannaen kisi aaram se pahle

ग़ज़ल

तड़पती हैं तमन्नाएँ किसी आराम से पहले

क़तील शिफ़ाई

;

तड़पती हैं तमन्नाएँ किसी आराम से पहले
लुटा होगा न यूँ कोई दिल-ए-नाकाम से पहले

ये आलम देख कर तू ने भी आँखें फेर लीं वर्ना
कोई गर्दिश नहीं थी गर्दिश-ए-अय्याम से पहले

गिरा है टूट कर शायद मिरी तक़दीर का तारा
कोई आवाज़ आई थी शिकस्त-ए-जाम से पहले

कोई कैसे करे दिल में छुपे तूफ़ाँ का अंदाज़ा
सुकूत-ए-मर्ग छाया है किसी कोहराम से पहले

न जाने क्यूँ हमें इस दम तुम्हारी याद आती है
जब आँखों में चमकते हैं सितारे शाम से पहले

सुनेगा जब ज़माना मेरी बर्बादी के अफ़्साने
तुम्हारा नाम भी आएगा मेरे नाम से पहले