सूरत-ए-मौज समुंदर में कहाँ से आया
मैं मुसाफ़िर की तरह घर में कहाँ से आया
ख़्वाहिश-ए-ख़ुद-निगरी सब्ज़ हुई किस रुत में
आईना दस्त-ए-सिकंदर में कहाँ से आया
सर दरीचों से निकल आए सदा सुनते ही
ये हुनर तेरे गदागर में कहाँ से आया
मरकज़-ए-गुल था सो अब ख़ाक नज़र आता है
ये तग़य्युर मिरे बिस्तर में कहाँ से आया
मेरी रातें भी सियह दिन भी अँधेरे मेरे
रंग ये मेरे मुक़द्दर में कहाँ से आया
किस ने खींचा मिरी तंहाई का नक़्शा 'आसिम'
दश्त इस शहर के मंज़र में कहाँ से आया
ग़ज़ल
सूरत-ए-मौज समुंदर में कहाँ से आया
लियाक़त अली आसिम