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सुनसान रास्तों से सवारी न आएगी | शाही शायरी
sunsan raston se sawari na aaegi

ग़ज़ल

सुनसान रास्तों से सवारी न आएगी

बशीर बद्र

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सुनसान रास्तों से सवारी न आएगी
अब धूल से अटी हुई लारी न आएगी

छप्पर के चाए-ख़ाने भी अब ऊँघने लगे
पैदल चलो कि कोई सवारी न आएगी

तहरीर ओ गुफ़्तुगू में किसे ढूँडते हैं लोग
तस्वीर में भी शक्ल हमारी न आएगी

सर पर ज़मीन ले के हवाओं के साथ जा
आहिस्ता चलने वाले की बारी न आएगी

पहचान अपनी हम ने मिटाई है इस तरह
बच्चों में कोई बात हमारी न आएगी