EN اردو
सुन अंदलीब-ए-चमन सोगवार हम भी हैं | शाही शायरी
sun andalib-e-chaman sogwar hum bhi hain

ग़ज़ल

सुन अंदलीब-ए-चमन सोगवार हम भी हैं

जमीला ख़ातून तस्नीम

;

सुन अंदलीब-ए-चमन सोगवार हम भी हैं
किसी के तीर-ए-नज़र का शिकार हम भी हैं

नज़र फिरा के पिलाते हो हर तरफ़ साग़र
निगाह-ए-मस्त के इक बादा-ख़्वार हम भी हैं

वो आ के महफ़िल-ए-रिंदाँ में हैं जो दोश-ब-दोश
तो आज बज़्म में दीवाना-वार हम भी हैं

वो मिस्ल-ए-ग़ुंचा जो महके हुए हैं पहलू में
ख़ुदा का शुक्र कि रंग-ए-बहार हम भी हैं

बताएँ क्या तुम्हें 'तस्लीम' राज़ मख़्फ़ी है
किसी की काकुल-ओ-रुख़ पे निसार हम भी हैं