सुब्ह की आज जो रंगत है वो पहले तो न थी
क्या ख़बर आज ख़िरामाँ सर-ए-गुलज़ार है कौन
शाम गुलनार हुई जाती है देखो तो सही
ये जो निकला है लिए मिशअल-ए-रुख़्सार है कौन
रात महकी हुई आई है कहीं से पूछो
आज बिखराए हुए ज़ुल्फ़-ए-तरह-दार है कौन
फिर दर-ए-दिल पे कोई देने लगा है दस्तक
जानिए फिर दिल-ए-वहशी का तलबगार है कौन
ग़ज़ल
सुब्ह की आज जो रंगत है वो पहले तो न थी
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़