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सितारा टूट के बिखरा और इक जहान खुला | शाही शायरी
sitara TuT ke bikhra aur ek jahan khula

ग़ज़ल

सितारा टूट के बिखरा और इक जहान खुला

शमीम रविश

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सितारा टूट के बिखरा और इक जहान खुला
अजीब रुख़ से अंधेरे में आसमान खुला

तुलू-ए-सुब्ह से पहले मैं छोड़ जाऊँगा
सियाह रात के पहलू में इक मकान खुला

फिर इस के बाद कोई राह वापसी की न थी
हवा के दोश पे इस तरह बादबान खुला

मैं जिस को ढूँड रहा था उदास रातों में
सितारा बन के वो पलकों के दरमियान खुला

न जाने कौन मिरे ख़्वाब ले गया मुझ से
कि उम्र भर न कभी फिर ये साएबान खुला

कभी जो हाथ उठाए 'रविश' दुआ के लिए
लबों के साथ समाअत का भी गुमान खुला