सितारा टूट के बिखरा और इक जहान खुला
अजीब रुख़ से अंधेरे में आसमान खुला
तुलू-ए-सुब्ह से पहले मैं छोड़ जाऊँगा
सियाह रात के पहलू में इक मकान खुला
फिर इस के बाद कोई राह वापसी की न थी
हवा के दोश पे इस तरह बादबान खुला
मैं जिस को ढूँड रहा था उदास रातों में
सितारा बन के वो पलकों के दरमियान खुला
न जाने कौन मिरे ख़्वाब ले गया मुझ से
कि उम्र भर न कभी फिर ये साएबान खुला
कभी जो हाथ उठाए 'रविश' दुआ के लिए
लबों के साथ समाअत का भी गुमान खुला
ग़ज़ल
सितारा टूट के बिखरा और इक जहान खुला
शमीम रविश