सितारा तो कभी का जल-बुझा है
ये आँसू सा तिरी पलकों पे क्या है
दरख़्तों को तो चुप होना था इक दिन
परिंदों को मगर क्या हो गया है
धनक दीवार के रस्ते में हाइल
वगरना जस्त-भर का फ़ासला है
उसे बंद आँख से मैं देख तो लूँ
मगर फिर उम्र-भर का फ़ासला है
चलो अपनी भी जानिब अब चलें हम
ये रस्ता देर से सूना पड़ा है

ग़ज़ल
सितारा तो कभी का जल-बुझा है
वज़ीर आग़ा