सीना-ओ-दिल हसरतों से छा गया
बस हुजूम-ए-यास जी घबरा गया
तुझ से कुछ देखा न हम ने जुज़ जफ़ा
पर वो क्या कुछ है कि जी को भा गया
खुल नहीं सकती हैं अब आँखें मिरी
जी में ये किस का तसव्वुर आ गया
मैं तो कुछ ज़ाहिर न की थी जी की बात
पर मिरी नज़रों के ढब से पा गया
पी गई कितनों का लोहू तेरी याद
ग़म तिरा कितने कलेजे खा गया
मिट गई थी उस के जी से तो झिचक
'दर्द' कुछ कुछ बक के तू चौंका गया
ग़ज़ल
सीना-ओ-दिल हसरतों से छा गया
ख़्वाजा मीर 'दर्द'