EN اردو
सीना-ए-संग में ढूँढता है गुदाज़ | शाही शायरी
sina-e-sang mein DhunDhta hai gudaz

ग़ज़ल

सीना-ए-संग में ढूँढता है गुदाज़

असरारुल हक़ असरार

;

सीना-ए-संग में ढूँढता है गुदाज़
दे ख़ुदा दिल को इक और उम्र-ए-दराज़

हम दिखाना भी चाहें अगर कुछ को कुछ
आइनों से करें किस तरह साज़-बाज़

इक तरफ़ ख़्वाब है इक तरफ़ ज़िंदगी
देखिए कौन होता है अब सरफ़राज़

तेरे ग़म से मिली दिल को वो ज़िंदगी
तुझ से भी कर दिया है हमें बे-नियाज़

इस तरह मेरी आँखों से आँसू बहे
बे-वुज़ू ही अदा हो गई हर नमाज़

रू-ब-रू उस के दिल ही को ले कर चलें
बह चलेगा तो ख़ूँ बज उठेगा तो साज़

ये झुके या कटे बस तिरे वास्ते
मेरे काँधों को दे वो सर-ए-इम्तियाज़

उन से भी दिल को 'असरार' कैसे कहीं
राज़ को तो ब-हर-हाल रखना है राज़