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शोर-ए-दरिया-ए-वफ़ा इशरत-ए-साहिल के क़रीब | शाही शायरी
shor-e-dariya-e-wafa-e-ishrat ishrat-e-sahil ke qarib

ग़ज़ल

शोर-ए-दरिया-ए-वफ़ा इशरत-ए-साहिल के क़रीब

इफ़्तिख़ार आज़मी

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शोर-ए-दरिया-ए-वफ़ा इशरत-ए-साहिल के क़रीब
रुक गए अपने क़दम आए जो मंज़िल के क़रीब

फिर ये वारफ़्तगी-ए-शौक़ समझ में आए
इक ज़रा जा के तो देखे कोई बिस्मिल के क़रीब

उन से बिछड़े हुए मुद्दत हुई लेकिन अब भी
इक चुभन होती है महसूस मुझे दिल के क़रीब

अक्स-ए-बाज़ार यहाँ भी न हो इस ख़ौफ़ से हम
लौट लौट आए हैं जा कर तिरी महफ़िल के क़रीब