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शो'ला शमीम-ए-ज़ुल्फ़ से आगे बढ़ा नहीं | शाही शायरी
shoala shamim-e-zulf se aage baDha nahin

ग़ज़ल

शो'ला शमीम-ए-ज़ुल्फ़ से आगे बढ़ा नहीं

रशीद अफ़रोज़

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शो'ला शमीम-ए-ज़ुल्फ़ से आगे बढ़ा नहीं
सहरा की जलती रेत में ठंडी हवा नहीं

पीले बदन में नीली रगें सर्द हो गईं
ख़ूँ बर्फ़ हो गया है कोई रास्ता नहीं

उस के मकाँ की छत पे सुलगने लगी है धूप
कमरे से अपने रात का डेरा उठा नहीं

बादल लिपट के सो गए सूरज के जिस्म से
दरिया के घर में आज भी चूल्हा जला नहीं

ख़ामोश क्यूँ खड़े हो मज़ारों के शहर में
बे-जान पत्थरों ने तो कुछ भी कहा नहीं