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शिकवे तिरे हुज़ूर किए जा रहा हूँ मैं | शाही शायरी
shikwe tere huzur kiye ja raha hun main

ग़ज़ल

शिकवे तिरे हुज़ूर किए जा रहा हूँ मैं

शकील बदायुनी

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शिकवे तिरे हुज़ूर किए जा रहा हूँ मैं
जो कुछ भी हो क़ुसूर किए जा रहा हूँ मैं

वहम-ए-तअय्युनात का अंजाम देखना
नज़दीकियों को दूर किए जा रहा हूँ मैं

महव-ए-तवाफ़ कूचा-ए-हस्ती में रहमतें
शायद कोई क़ुसूर किए जा रहा हूँ मैं

रक्खी हुई है संग-ए-दर-ए-यार पर जबीं
इस इज्ज़ पर ग़ुरूर किए जा रहा हूँ मैं

नज़्र-ए-निगाह-ए-नाज़ हैं दिल की नज़ाकतें
शीशे को चूर चूर किए जा रहा हूँ मैं

रब्त-ए-नियाज़-ओ-नाज़ का आलम तो देखना
नादिम हैं वो क़ुसूर किए जा रहा हूँ मैं

सोचा कभी न हज़रत-ए-वाइज़ ने ये 'शकील'
रिंदों में ज़िक्र-ए-हूर किए जा रहा हूँ मैं