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शिकवा इस का तो नहीं है जो करम छोड़ दिया | शाही शायरी
shikwa is ka to nahin hai jo karam chhoD diya

ग़ज़ल

शिकवा इस का तो नहीं है जो करम छोड़ दिया

अख़तर मुस्लिमी

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शिकवा इस का तो नहीं है जो करम छोड़ दिया
है सितम ये कि सितमगर ने सितम छोड़ दिया

ले गया छीन कोई सब सर-ओ-सामान-ए-हयात
हाँ मगर एक सुलगता हुआ ग़म छोड़ दिया

लग गई इन को भी शायद तिरे कूचे की हवा
मय-कदा रिंद ने ज़ाहिद ने हरम छोड़ दिया

हाए उस रह-रव-ए-बर्बाद की मंज़िल ऐ दोस्त
जिस ने घबरा के तिरा नक़्श-ए-क़दम छोड़ दिया